Thursday, June 22, 2017
Saturday, April 29, 2017
NFJS Day 2
DevOps concepts in novel form book : The Phoenix Project
Free book Migrating to Cloud-Native Application Architecture
Downloaded and built github sample code "Use Groovy now"
Downloaded and built github "Advanced Groovy"
/usr/share/dict folder on linux has a file with webster dictionary
Download file with the dictionary words on windows
Downloaded and built github sample code "Use Groovy now"
Downloaded and built github "Advanced Groovy"
/usr/share/dict folder on linux has a file with webster dictionary
Download file with the dictionary words on windows
Friday, April 28, 2017
Getting started with Java 8
I attended the No Fluff Just Stuff conference today, in Columbus, OH. I was inspired by Ken Kousen's presentation of Java 8 recipes. So to get started on Java 8 and to be able to run the sample code he was showing, I did the following steps:
Thanks Ken!!!
Some other tips he gave were:
Thanks to my company Nationwide for sending me to this awesome conference.
- Downloaded IntelliJ IDEA community version
- Downloaded JDK 8
- Downloaded as a zip, sample code from github for java 8 recipes
- Followed these instructions to build the project
Thanks Ken!!!
Some other tips he gave were:
- Good book to learn Java is Head First Java.
- oreilly.com (safari online) coupon code for books and videos 50% off : AUTHD
- Free download of book Gradle recipes for Android
- Publishing a new book : Modern Java Recipes
Thanks to my company Nationwide for sending me to this awesome conference.
Thursday, March 23, 2017
Shri Kundalini Stuti Stotram
Kundalini Stuti Stotram on youtube with meaning in Hindi
Link to mp3 audio
|| श्री कुण्डलिनी स्तुति स्तोत्र ||
ॐ जन्मोद्धारनिरीक्षणीहतरुणी
वेदादिबीजादिमां
नित्यं चेतसि भाव्यते भुवि कदा सद्वाक्य
सञ्चारिणी
मां पातु प्रियदासभावकपदं सङ्घातये श्रीधरे !
धात्रि ! त्वं स्वयमादिदेववनिता दीनातिदिनं पशुम्
II1II
रक्ताभामृतचन्द्रिका लिपिमयी सर्पाकृतिनिर्द्
रिता
जाग्रत्कूर्मसमाश्रिता भगवती त्वं मां समालोकय
मांसो मांसोद्गन्धकुगन्धदोषजडितं वेदादि
कार्यान्वितम्
स्वल्पास्वामलचन्द्र कोटिकिरणै-नित्यं शरीरम् कुरु
II2II
सिद्धार्थी निजदोष वित्स्थलगतिर्व्याजीयते
विद्यया
कुण्डल्याकुलमार्गमुक्तनगरी माया कुमार्गःश्रिया
यद्येवम् भजति प्रभातसमये मध्यान्हकालेSथवा
नित्यम् यः कुलकुण्डलीजपपदाम्भोजं स सिद्धो भवेत्
II3II
वाय्वाकाशचतुर्दलेSतिविमले वाञ्छोफ़लोन्मूलके
नित्यम् सम्प्रति नित्त्यदेहघटिता साङ्केतिता
भाविता
विद्या कुण्डलमानिनी स्वजननी माया क्रिया
भाव्यते
यैस्तैः सिद्धकुलोद्भवैः प्रणतिभिः सत्स्तोत्रकैः
शम्शुभिः II4II
वाताशन्कविमोहिनीति बलवच्छायापटोद्गामिनी
संसारादी महासुख प्रहरिणी ! तत्र स्थिता
योगिनी
सर्वग्रन्थिविभेदिनी स्वभुजगा सूक्ष्मातिसूक्ष्मा
परा
ब्रह्मज्ञानविनोदिनी कुलकुटीराघातनी भाव्यते
II5II
वन्दे श्रीकुलकुण्डलीं त्रिवलिभिः साङ्गैः
स्वयंभूप्रियां
प्रावेष्ट्याम्बर चित्तमध्यचपला बालाबलानिष्कलां
या देवी परिभाति वेदवदना सम्भावनी तापिनी
इष्टानाम् शिरसि स्वयम्भुवनिता सम्भावयामि
क्रियाम् II6II
वाणी कोटि मृदङ्गनाद मदना- निश्रेणिकोटिध्व
निः
प्राणेशी प्रियताममूलकमनोल्लासैकपूर्णानना
आषाढोद्भवमेघराजिजनित ध्वान्ताननास्थायिनी
माता सा परिपातु सूक्ष्मपथगे ! मां योगिनां
शङ्करी II7II
त्वामाश्रित्त्य नरा व्रजन्ति सहसा
वैकुण्ठकैलासयोः
आनंदैक विलासिनीम् शशिशता नन्दाननां कारणम्
मातः श्रीकुलकुण्डली प्रियकले काली कलोद्दीपने !
तत्स्थानं प्रणमामि भद्रवनिते ! मामुद्धर त्वं पथे II8II
कुण्डलीशक्तिमार्गस्थं स्तोत्राष्टकमहाफ़लम्
यः पठेत् प्रातरुत्थाय स योगी भवति धृवम्
क्षणादेव हि पाठेन कविनाथो भवेदिह
पवित्रौ कुण्डली योगी ब्रह्मलीनो भवेन्महान्
इति ते कथितं नाथ ! कुण्डलीकोमलं स्तवम्
एतत् स्तोत्र प्रसादेन देवेषु गुरुगीष्पतिः
सर्वे देवाः सिद्धियुता अस्याः स्तोत्रप्रसादतः
द्विपरार्धं चिरञ्जीवी ब्रह्मा सर्वसुरेश्वरः
इति श्री आदि शक्ती भैरवी विरचितम्
श्री कुण्डलिनी स्तुति स्तोत्रम् संपूर्णम् ॥ॐ ॥
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|| श्री कुण्डलिनी स्तुति स्तोत्र ||
ॐ जन्मोद्धारनिरीक्षणीहतरुणी
वेदादिबीजादिमां
नित्यं चेतसि भाव्यते भुवि कदा सद्वाक्य
सञ्चारिणी
मां पातु प्रियदासभावकपदं सङ्घातये श्रीधरे !
धात्रि ! त्वं स्वयमादिदेववनिता दीनातिदिनं पशुम्
II1II
रक्ताभामृतचन्द्रिका लिपिमयी सर्पाकृतिनिर्द्
रिता
जाग्रत्कूर्मसमाश्रिता भगवती त्वं मां समालोकय
मांसो मांसोद्गन्धकुगन्धदोषजडितं वेदादि
कार्यान्वितम्
स्वल्पास्वामलचन्द्र कोटिकिरणै-नित्यं शरीरम् कुरु
II2II
सिद्धार्थी निजदोष वित्स्थलगतिर्व्याजीयते
विद्यया
कुण्डल्याकुलमार्गमुक्तनगरी माया कुमार्गःश्रिया
यद्येवम् भजति प्रभातसमये मध्यान्हकालेSथवा
नित्यम् यः कुलकुण्डलीजपपदाम्भोजं स सिद्धो भवेत्
II3II
वाय्वाकाशचतुर्दलेSतिविमले वाञ्छोफ़लोन्मूलके
नित्यम् सम्प्रति नित्त्यदेहघटिता साङ्केतिता
भाविता
विद्या कुण्डलमानिनी स्वजननी माया क्रिया
भाव्यते
यैस्तैः सिद्धकुलोद्भवैः प्रणतिभिः सत्स्तोत्रकैः
शम्शुभिः II4II
वाताशन्कविमोहिनीति बलवच्छायापटोद्गामिनी
संसारादी महासुख प्रहरिणी ! तत्र स्थिता
योगिनी
सर्वग्रन्थिविभेदिनी स्वभुजगा सूक्ष्मातिसूक्ष्मा
परा
ब्रह्मज्ञानविनोदिनी कुलकुटीराघातनी भाव्यते
II5II
वन्दे श्रीकुलकुण्डलीं त्रिवलिभिः साङ्गैः
स्वयंभूप्रियां
प्रावेष्ट्याम्बर चित्तमध्यचपला बालाबलानिष्कलां
या देवी परिभाति वेदवदना सम्भावनी तापिनी
इष्टानाम् शिरसि स्वयम्भुवनिता सम्भावयामि
क्रियाम् II6II
वाणी कोटि मृदङ्गनाद मदना- निश्रेणिकोटिध्व
निः
प्राणेशी प्रियताममूलकमनोल्लासैकपूर्णानना
आषाढोद्भवमेघराजिजनित ध्वान्ताननास्थायिनी
माता सा परिपातु सूक्ष्मपथगे ! मां योगिनां
शङ्करी II7II
त्वामाश्रित्त्य नरा व्रजन्ति सहसा
वैकुण्ठकैलासयोः
आनंदैक विलासिनीम् शशिशता नन्दाननां कारणम्
मातः श्रीकुलकुण्डली प्रियकले काली कलोद्दीपने !
तत्स्थानं प्रणमामि भद्रवनिते ! मामुद्धर त्वं पथे II8II
कुण्डलीशक्तिमार्गस्थं स्तोत्राष्टकमहाफ़लम्
यः पठेत् प्रातरुत्थाय स योगी भवति धृवम्
क्षणादेव हि पाठेन कविनाथो भवेदिह
पवित्रौ कुण्डली योगी ब्रह्मलीनो भवेन्महान्
इति ते कथितं नाथ ! कुण्डलीकोमलं स्तवम्
एतत् स्तोत्र प्रसादेन देवेषु गुरुगीष्पतिः
सर्वे देवाः सिद्धियुता अस्याः स्तोत्रप्रसादतः
द्विपरार्धं चिरञ्जीवी ब्रह्मा सर्वसुरेश्वरः
इति श्री आदि शक्ती भैरवी विरचितम्
श्री कुण्डलिनी स्तुति स्तोत्रम् संपूर्णम् ॥ॐ ॥
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Friday, March 17, 2017
Friday, December 16, 2016
गोविन्द दामोदर माधवेति स्तोत्रं govind damodar madhaveti storam
http://shobhasinha.blogspot.com/2015/12/govinddamodarstotram.html
https://www.youtube.com/watch?v=o2St5_AMls4
अग्रे कुरूणामथ पाण्डवानां
https://www.youtube.com/watch?v=o2St5_AMls4
अग्रे कुरूणामथ पाण्डवानां
दु:शासने-नाहृत - वस्त्र -केशा।
कृष्णा तदाक्रोशदनन्यनाथा
गोविन्द दामोदर माधवेति ।।
(जब कौरव और पाण्डवों के सामने दु:शासन ने द्रौपदी के वस्त्र और बालों को पकड़ कर खींचा, तब अनन्य अनाथ द्रौपदी ने रोकर पुकारा -- 'हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव!--
श्रीकृष्ण विष्णो मधुकैटभारे
भक्तानुकम्पिन् भगवन् मुरारे ।
त्रायस्व मां केशव लोकनाथा
गोविन्द दामोदर माधवेति ।।
(हे श्रीकृष्ण ! हे विष्णो ! हे मधुकैटभ को मारने वाले ! हे भक्तों के ऊपर अकारण अनुकम्पा करने वाले ! हे मुरारे ! हे केशव ! हे लोकेश्वर ! हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव ! मेरी रक्षा करो, रक्षा करो।)
ध्येय: सदा योगिभिरप्रमेय-
श्चिन्ताहरश्चिन्तिपारिजात: ।
कस्तूरिका - कल्पित - नीलवर्णो
गोविन्द दामोदर माधवेति ।।
( योगी भी जिन्हें ठीक - ठीक नहीं जान पाते , जो सभी प्रकार की चिन्ताओं को हरने वाले और मनोवांछित वस्तुओं को देने के लिये कल्पवृक्ष के समान हैं तथा जिनके शरीर का वर्ण कस्तूरी के समान नीला है, उन्हें सदा ही 'गोविन्द '! दामोदर ! माधव ! इन नामों से स्मरण करना चाहिये।
संसारकूपे पतितोअत्यगाधे
मोहान्धपूर्णे विषयाभितप्ते ।
करावलम्बं मम देहि विष्णो
गोविन्द दामोदर माधवेति ।।
( जो मोहरूपी अंधकार से व्याप्त और विषयों की ज्वाला से संतप्त है , ऐसे अथाह संसार रूप कूप में मैं पड़ा हुआ हूँ। हे मधूसूदन !हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव ! मुझे अपने हाथ का सहारा दीजिए।)
त्वामेव याचे मम देहि जिह्वे
समागते दण्डधरे कृतान्ते ।
वक्तव्यमेवं मधुरं सुभक्त्या
गोविन्द दामोदर माधवेति ।।
( हे जिह्वे ! मैं तुझी से एक भिक्षा मांगता हूँ , तूही मुझे दे ।वह यह कि जब दण्डपाणि यमराज इस शरीर का अंत करने आवें तो बड़े ही प्रेम से गदगद् स्वर में ' हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव !' इन मन्जुल नामों का उच्चारण करती रहना।)
भजस्व मन्त्रं भवबन्धमुक्त्यै
जिह्वे रसज्ञे सुलभं मनोज्ञम् ।
द्वैपायनाद्यैर्मुनिभि: प्रजप्तं
गोविन्द दामोदर माधवेति ।।
( हे जिह्वे ! हे रसज्ञे ! संसाररूपी बंधन को काटने के लिये तू सर्वदा ' हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव ! ' इन नामरूपी मन्त्र का जप किया कर, जो सुलभ एवं सुन्दर है और जिसे व्यास , वसिष्ठादि ऋषियों ने भी जपा है।)
गोपाल वंशीधर रूपसिन्धो
लोकेश नारायण दीनबन्धो ।
उच्चस्वरैस्त्वं वद सर्वदैव
गोविन्द दामोदर माधवेति ।।
( रे जिह्वे ! तू निरन्तर ' गोपाल ! वंशीधर ! रूपसिन्धो ! लोकेश ! नारायण ! दीनबंधो ! गोविन्द ! दामोदर ! माधव ! ' इन नामों का उच्च स्वर से कीर्तन किया करती रहना।
जिह्वे सदैवं भज सुन्दराणि
नामानि कृष्णस्य मनोहराणि।
समस्त - भक्तार्ति विनाशनानि
गोविन्द दामोदर माधवेति ।।
( हे जिह्वे ! तू सदा ही श्रीकृष्णचन्द्र के ' गोविन्द ! दामोदर ! माधव ! ' इन मनोहर मंजुल नामों को , जो भक्तों के संकटों की निवृत्ति करने वाले हैं, भजती रह।)
गोविन्द गोविन्द हरे मुरारे
गोविन्द गोविन्द मुकुन्द कृष्ण।
गोविन्द गोविन्द रथांड़्गपाणे
गोविन्द दामोदर माधवेति ।।
(हे जिह्वे ! ' गोविन्द ! गोविन्द ! हरे ! मुरारे ! गोविन्द ! गोविन्द ! मुकुन्द ! कृष्ण ! गोविन्द ! गोविन्द ! रथाड़्गपाणे ! गोविन्द ! दामोदर ! माधव! ' इन नामों को तू सदा जपती रह ।)
सुखावसाने त्विदमेव सारं
दु:खावसाने त्विदमेव गेयम्।
देहावसाने त्विदमेव जाप्यं
गोविन्द दामोदर माधवेति ।।
(सुख के अंत में यही सार है अर्थात् सभी सुख इसी नाम में समाहित हैं।दु:ख के अंत में यही गाने योग्य है और शरीर का अंत होने के समय भी ' हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव ! यही मन्त्र जपने योग्य है।)
दुर्वारवाक्यं परिगृह्य कृष्णा
मृगीव भीता तु कथं कथंचित।
सभां प्रविष्टा मनसाजुहाव
गोविन्द दामोदर माधवेति ।।
( दु:शासन के दुर्वचनों को स्वीकार कर मृगी के समान भयभीत हुई द्रौपदी किसी तरह सभा में प्रवेश कर स्वयं को अनाथ मानती हुई मन ही मन ' गोविन्द ! दामोदर ! माधव ! ' इस प्रकार भगवान का स्मरण करने लगी ।)
श्रीकृष्ण राधावर गोकुलेश
गोपाल गोवर्धन नाथ विष्णो ।
जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेव
गोविन्द दामोदर माधवेति ।।
( हे जिह्वे ! तू ' श्रीकृष्ण ! राधारमण ! व्रजराज ! गोपाल ! गोवर्धन ! नाथ ! विष्णो ! गोविन्द ! दामोदर ! माधव ! ---इन नामामृत का निरन्तर पान करती रह।)
श्रीनाथ विश्वेश्वर विश्वमूर्ते
श्रीदेवकीनन्दन दैत्यशत्रो ।
जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेव
गोविन्द दामोदर माधवेति ।।
( हे जिह्वे ! तू ' श्रीनाथ ! सर्वेश्वर ! श्रीविष्णु स्वरूप देवकीनन्दन ! असुर निकन्दन ! गोविन्द ! दामोदर ! माधव ! इन नामामृत का निरन्तर पान करती रह। )
गोपीपते कंसरिपो मुकुन्द
लक्ष्मीपते केशव वासुदेव।
जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेव
गोविन्द दामोदर माधवेति ।।
( हे जिह्वे ! तू ' गोपीपते ! कंसरिपो ( कंस का संहार करने वाले ) ! मुकुन्द ! लक्ष्मीपते ! केशव ! वासुदेव ! गोविन्द ! माधव ! ' --- इन नामामृत का निरंतर पान करती रह।)
गोपीजनाह्लादकर व्रजेश
गोचारणा- रण्य - कृत - प्रवेश ।
जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेव
गोविन्द दामोदर माधवेति ।।
( व्रजराज, व्रजांगनाओं को आनन्दित करने वाले , जिन्होंने गौओं को चराने के लिये वन में प्रवेश किया, हे जिह्वे ! तू उन्हीं मुरारी के गोविन्द ! दामोदर ! माधव ! ' --- इन नामामृत का निरन्तर पान कर। )
प्राणेश विश्वम्भर कैटभारे
वैकुण्ठ नारायण चक्रपाणे ।
जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेव
गोविन्द दामोदर माधवेति।।
( हे जिह्वे ! तू ' प्राणेश ! विश्वम्भर ! कैटभारे ! वैकुण्ठ ! नारायण ! चक्रपाणे ! गोविन्द ! दामोदर ! माधव !--- इन नामामृत का निरन्तर पान करती रह ।)
हरे मुरारे मधुसूदनाद्य
श्रीराम सीतावर रावणारे ।
जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेव
गोविन्द दामोदर माधवेति ।।
( ' हे हरे ! हे मुरारे ! हे मधुसूदन ! हे पुराणपुरुषोत्तम ! हे रावणारे ! हे सीतापते श्रीराम ! हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव ! --- इन नामामृत का हे जिह्वे ! तू निरन्तर पान करती रह ।)'
श्रीयादवेन्द्राद्रिधराम्बुजाक्ष
गोगोपगोपीसुखदानदक्ष।
जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेव
गोविन्द दामोदर माधवेति।।
( हे जिह्वे ! ' श्रीयदुकुलनाथ ! गिरिधर ! कमलनयन ! गो, गोप और गोपियों को सुख देने में कुशल श्रीगोविन्द ! दामोदर ! माधव ! ' इन नामामृत का निरन्तर पान करती रह ।)
धरा- भरोत्तारण - गोप - वेश
विहारलीला - कृतबन्धुशेष ।
जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेव
गोविन्द दामोदर माधवेति ।।
( जिन्होंने पृथ्वी का भार उतारने के लिये सुन्दर ग्वाला का रूप धारण किया है और आनन्दमयी लीला करने के निमित्त ही शेषजी (बलराम ) को अपना भाई बनाया है , ऐसे उन नटवर नागर के गोविन्द' ! दामोदर ! माधव ! ' - इस नामामृत का तू निरन्तर पान करती रह ।)
बकी - बकाघासुर - धेनुकारे
केशी - तृणावर्तविघातदक्ष ।
जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेव
गोविन्द दामोदर माधवेति ।।
( जो पूतना , बकासुर ,अघासुर , और धेनुकासुर , आदि राक्षसों के शत्रु हैं और केशी तथा तृणावर्त को पछाड़ने वाले हैं , हे जिह्वे!उन असुरारि मुरारि के 'गोविन्द ! दामोदर ! माधव !' -- इन नामामृत का तू निरन्तर पान करती रह ।)
श्रीजानकीजीवन रामचन्द्र
निशाचरारे भरताग्रजेश।
जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेव
गोविन्द दामोदर माधवेति ।।
( ' हे जानकीजीवन भगवान राम ! हे दैत्यदलन भरताग्रज ! हे ईश ! हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव ! ' - इन नामामृत का हे जिह्वे ! तू निरन्तर पान करती रह।)
नारायणानन्त हरे नृसिंह
प्रह्लादबाधाहर हे कृपालो।
जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेव
गोविन्द दामोदर माधवेति।।
(' हे प्रह्लाद की बाधा हरने वाले दयामय नृसिंह ! नारायण ! अनन्त ! हरे ! गोविन्द ! दामोदर ! माधव ! इन नामों का हे जिह्वे ! तू हमेशा पान करती रह।' )
लीला - मनुष्याकृति - रामरूप
प्रताप - दासी - कृत - सर्वभूप ।
जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेव
गोविन्द दामोदर माधवेति ।।
(' हे जिह्वे ! जिन्होंने लीला ही से मनुष्यों की सी आकृति बनाकर रामरूप प्रकट किया है और अपने प्रबल पराक्रम से सभी भूपों को दास बना लिया है , तू उन नीलाम्बुज श्यामसुन्दर श्रीराम के ' गोविन्द ! दामोदर ! माधव ! - इस नामामृत का ही निरन्तर पान करती रह ।' )
श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे
हे नाथ नारायण वासुदेव ।
जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेव
गोविन्द दामोदर माधवेति ।।
( ' हे जिह्वे ! तू ' श्रीकृष्ण ! गोविन्द ! हरे ! मुरारे ! हे नाथ ! नारायण ! वासुदेव ! तथा गोविन्द ! दामोदर ! माधव ! इन नामों का निरन्तर पान करती रह।' )
वक्तुंसमर्थोअपि न वक्ति कश्चि दहो
जाननां व्यसनाभिमुख्यम् ।
जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेव
गोविन्द दामोदर माधवेति ।।
(' अहो ! मनुष्यों की विषयलोलुपता कैसी आश्चर्यजनक है ! कोई - कोई तो बोलने में समर्थ होने पर भी भगवान नाम का उच्चारण नहीं करते , किन्तु हे जिह्वे ! मैं तुमसे कहता हूँ , तू ' गोविन्द ! दामोदर ! माधव ! इन नामों का प्रेमपूर्वक निरन्तर पान करती रह।')
Friday, November 4, 2016
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