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https://www.youtube.com/watch?v=o2St5_AMls4
अग्रे कुरूणामथ पाण्डवानां
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अग्रे कुरूणामथ पाण्डवानां
दु:शासने-नाहृत - वस्त्र -केशा।
कृष्णा तदाक्रोशदनन्यनाथा
गोविन्द दामोदर माधवेति ।।
(जब कौरव और पाण्डवों के सामने दु:शासन ने द्रौपदी के वस्त्र और बालों को पकड़ कर खींचा, तब अनन्य अनाथ द्रौपदी ने रोकर पुकारा -- 'हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव!--
श्रीकृष्ण विष्णो मधुकैटभारे
भक्तानुकम्पिन् भगवन् मुरारे ।
त्रायस्व मां केशव लोकनाथा
गोविन्द दामोदर माधवेति ।।
(हे श्रीकृष्ण ! हे विष्णो ! हे मधुकैटभ को मारने वाले ! हे भक्तों के ऊपर अकारण अनुकम्पा करने वाले ! हे मुरारे ! हे केशव ! हे लोकेश्वर ! हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव ! मेरी रक्षा करो, रक्षा करो।)
ध्येय: सदा योगिभिरप्रमेय-
श्चिन्ताहरश्चिन्तिपारिजात: ।
कस्तूरिका - कल्पित - नीलवर्णो
गोविन्द दामोदर माधवेति ।।
( योगी भी जिन्हें ठीक - ठीक नहीं जान पाते , जो सभी प्रकार की चिन्ताओं को हरने वाले और मनोवांछित वस्तुओं को देने के लिये कल्पवृक्ष के समान हैं तथा जिनके शरीर का वर्ण कस्तूरी के समान नीला है, उन्हें सदा ही 'गोविन्द '! दामोदर ! माधव ! इन नामों से स्मरण करना चाहिये।
संसारकूपे पतितोअत्यगाधे
मोहान्धपूर्णे विषयाभितप्ते ।
करावलम्बं मम देहि विष्णो
गोविन्द दामोदर माधवेति ।।
( जो मोहरूपी अंधकार से व्याप्त और विषयों की ज्वाला से संतप्त है , ऐसे अथाह संसार रूप कूप में मैं पड़ा हुआ हूँ। हे मधूसूदन !हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव ! मुझे अपने हाथ का सहारा दीजिए।)
त्वामेव याचे मम देहि जिह्वे
समागते दण्डधरे कृतान्ते ।
वक्तव्यमेवं मधुरं सुभक्त्या
गोविन्द दामोदर माधवेति ।।
( हे जिह्वे ! मैं तुझी से एक भिक्षा मांगता हूँ , तूही मुझे दे ।वह यह कि जब दण्डपाणि यमराज इस शरीर का अंत करने आवें तो बड़े ही प्रेम से गदगद् स्वर में ' हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव !' इन मन्जुल नामों का उच्चारण करती रहना।)
भजस्व मन्त्रं भवबन्धमुक्त्यै
जिह्वे रसज्ञे सुलभं मनोज्ञम् ।
द्वैपायनाद्यैर्मुनिभि: प्रजप्तं
गोविन्द दामोदर माधवेति ।।
( हे जिह्वे ! हे रसज्ञे ! संसाररूपी बंधन को काटने के लिये तू सर्वदा ' हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव ! ' इन नामरूपी मन्त्र का जप किया कर, जो सुलभ एवं सुन्दर है और जिसे व्यास , वसिष्ठादि ऋषियों ने भी जपा है।)
गोपाल वंशीधर रूपसिन्धो
लोकेश नारायण दीनबन्धो ।
उच्चस्वरैस्त्वं वद सर्वदैव
गोविन्द दामोदर माधवेति ।।
( रे जिह्वे ! तू निरन्तर ' गोपाल ! वंशीधर ! रूपसिन्धो ! लोकेश ! नारायण ! दीनबंधो ! गोविन्द ! दामोदर ! माधव ! ' इन नामों का उच्च स्वर से कीर्तन किया करती रहना।
जिह्वे सदैवं भज सुन्दराणि
नामानि कृष्णस्य मनोहराणि।
समस्त - भक्तार्ति विनाशनानि
गोविन्द दामोदर माधवेति ।।
( हे जिह्वे ! तू सदा ही श्रीकृष्णचन्द्र के ' गोविन्द ! दामोदर ! माधव ! ' इन मनोहर मंजुल नामों को , जो भक्तों के संकटों की निवृत्ति करने वाले हैं, भजती रह।)
गोविन्द गोविन्द हरे मुरारे
गोविन्द गोविन्द मुकुन्द कृष्ण।
गोविन्द गोविन्द रथांड़्गपाणे
गोविन्द दामोदर माधवेति ।।
(हे जिह्वे ! ' गोविन्द ! गोविन्द ! हरे ! मुरारे ! गोविन्द ! गोविन्द ! मुकुन्द ! कृष्ण ! गोविन्द ! गोविन्द ! रथाड़्गपाणे ! गोविन्द ! दामोदर ! माधव! ' इन नामों को तू सदा जपती रह ।)
सुखावसाने त्विदमेव सारं
दु:खावसाने त्विदमेव गेयम्।
देहावसाने त्विदमेव जाप्यं
गोविन्द दामोदर माधवेति ।।
(सुख के अंत में यही सार है अर्थात् सभी सुख इसी नाम में समाहित हैं।दु:ख के अंत में यही गाने योग्य है और शरीर का अंत होने के समय भी ' हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव ! यही मन्त्र जपने योग्य है।)
दुर्वारवाक्यं परिगृह्य कृष्णा
मृगीव भीता तु कथं कथंचित।
सभां प्रविष्टा मनसाजुहाव
गोविन्द दामोदर माधवेति ।।
( दु:शासन के दुर्वचनों को स्वीकार कर मृगी के समान भयभीत हुई द्रौपदी किसी तरह सभा में प्रवेश कर स्वयं को अनाथ मानती हुई मन ही मन ' गोविन्द ! दामोदर ! माधव ! ' इस प्रकार भगवान का स्मरण करने लगी ।)
श्रीकृष्ण राधावर गोकुलेश
गोपाल गोवर्धन नाथ विष्णो ।
जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेव
गोविन्द दामोदर माधवेति ।।
( हे जिह्वे ! तू ' श्रीकृष्ण ! राधारमण ! व्रजराज ! गोपाल ! गोवर्धन ! नाथ ! विष्णो ! गोविन्द ! दामोदर ! माधव ! ---इन नामामृत का निरन्तर पान करती रह।)
श्रीनाथ विश्वेश्वर विश्वमूर्ते
श्रीदेवकीनन्दन दैत्यशत्रो ।
जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेव
गोविन्द दामोदर माधवेति ।।
( हे जिह्वे ! तू ' श्रीनाथ ! सर्वेश्वर ! श्रीविष्णु स्वरूप देवकीनन्दन ! असुर निकन्दन ! गोविन्द ! दामोदर ! माधव ! इन नामामृत का निरन्तर पान करती रह। )
गोपीपते कंसरिपो मुकुन्द
लक्ष्मीपते केशव वासुदेव।
जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेव
गोविन्द दामोदर माधवेति ।।
( हे जिह्वे ! तू ' गोपीपते ! कंसरिपो ( कंस का संहार करने वाले ) ! मुकुन्द ! लक्ष्मीपते ! केशव ! वासुदेव ! गोविन्द ! माधव ! ' --- इन नामामृत का निरंतर पान करती रह।)
गोपीजनाह्लादकर व्रजेश
गोचारणा- रण्य - कृत - प्रवेश ।
जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेव
गोविन्द दामोदर माधवेति ।।
( व्रजराज, व्रजांगनाओं को आनन्दित करने वाले , जिन्होंने गौओं को चराने के लिये वन में प्रवेश किया, हे जिह्वे ! तू उन्हीं मुरारी के गोविन्द ! दामोदर ! माधव ! ' --- इन नामामृत का निरन्तर पान कर। )
प्राणेश विश्वम्भर कैटभारे
वैकुण्ठ नारायण चक्रपाणे ।
जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेव
गोविन्द दामोदर माधवेति।।
( हे जिह्वे ! तू ' प्राणेश ! विश्वम्भर ! कैटभारे ! वैकुण्ठ ! नारायण ! चक्रपाणे ! गोविन्द ! दामोदर ! माधव !--- इन नामामृत का निरन्तर पान करती रह ।)
हरे मुरारे मधुसूदनाद्य
श्रीराम सीतावर रावणारे ।
जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेव
गोविन्द दामोदर माधवेति ।।
( ' हे हरे ! हे मुरारे ! हे मधुसूदन ! हे पुराणपुरुषोत्तम ! हे रावणारे ! हे सीतापते श्रीराम ! हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव ! --- इन नामामृत का हे जिह्वे ! तू निरन्तर पान करती रह ।)'
श्रीयादवेन्द्राद्रिधराम्बुजाक्ष
गोगोपगोपीसुखदानदक्ष।
जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेव
गोविन्द दामोदर माधवेति।।
( हे जिह्वे ! ' श्रीयदुकुलनाथ ! गिरिधर ! कमलनयन ! गो, गोप और गोपियों को सुख देने में कुशल श्रीगोविन्द ! दामोदर ! माधव ! ' इन नामामृत का निरन्तर पान करती रह ।)
धरा- भरोत्तारण - गोप - वेश
विहारलीला - कृतबन्धुशेष ।
जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेव
गोविन्द दामोदर माधवेति ।।
( जिन्होंने पृथ्वी का भार उतारने के लिये सुन्दर ग्वाला का रूप धारण किया है और आनन्दमयी लीला करने के निमित्त ही शेषजी (बलराम ) को अपना भाई बनाया है , ऐसे उन नटवर नागर के गोविन्द' ! दामोदर ! माधव ! ' - इस नामामृत का तू निरन्तर पान करती रह ।)
बकी - बकाघासुर - धेनुकारे
केशी - तृणावर्तविघातदक्ष ।
जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेव
गोविन्द दामोदर माधवेति ।।
( जो पूतना , बकासुर ,अघासुर , और धेनुकासुर , आदि राक्षसों के शत्रु हैं और केशी तथा तृणावर्त को पछाड़ने वाले हैं , हे जिह्वे!उन असुरारि मुरारि के 'गोविन्द ! दामोदर ! माधव !' -- इन नामामृत का तू निरन्तर पान करती रह ।)
श्रीजानकीजीवन रामचन्द्र
निशाचरारे भरताग्रजेश।
जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेव
गोविन्द दामोदर माधवेति ।।
( ' हे जानकीजीवन भगवान राम ! हे दैत्यदलन भरताग्रज ! हे ईश ! हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव ! ' - इन नामामृत का हे जिह्वे ! तू निरन्तर पान करती रह।)
नारायणानन्त हरे नृसिंह
प्रह्लादबाधाहर हे कृपालो।
जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेव
गोविन्द दामोदर माधवेति।।
(' हे प्रह्लाद की बाधा हरने वाले दयामय नृसिंह ! नारायण ! अनन्त ! हरे ! गोविन्द ! दामोदर ! माधव ! इन नामों का हे जिह्वे ! तू हमेशा पान करती रह।' )
लीला - मनुष्याकृति - रामरूप
प्रताप - दासी - कृत - सर्वभूप ।
जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेव
गोविन्द दामोदर माधवेति ।।
(' हे जिह्वे ! जिन्होंने लीला ही से मनुष्यों की सी आकृति बनाकर रामरूप प्रकट किया है और अपने प्रबल पराक्रम से सभी भूपों को दास बना लिया है , तू उन नीलाम्बुज श्यामसुन्दर श्रीराम के ' गोविन्द ! दामोदर ! माधव ! - इस नामामृत का ही निरन्तर पान करती रह ।' )
श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे
हे नाथ नारायण वासुदेव ।
जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेव
गोविन्द दामोदर माधवेति ।।
( ' हे जिह्वे ! तू ' श्रीकृष्ण ! गोविन्द ! हरे ! मुरारे ! हे नाथ ! नारायण ! वासुदेव ! तथा गोविन्द ! दामोदर ! माधव ! इन नामों का निरन्तर पान करती रह।' )
वक्तुंसमर्थोअपि न वक्ति कश्चि दहो
जाननां व्यसनाभिमुख्यम् ।
जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेव
गोविन्द दामोदर माधवेति ।।
(' अहो ! मनुष्यों की विषयलोलुपता कैसी आश्चर्यजनक है ! कोई - कोई तो बोलने में समर्थ होने पर भी भगवान नाम का उच्चारण नहीं करते , किन्तु हे जिह्वे ! मैं तुमसे कहता हूँ , तू ' गोविन्द ! दामोदर ! माधव ! इन नामों का प्रेमपूर्वक निरन्तर पान करती रह।')